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सार
कोर्ट ने 25 हजार रुपये हर्जाना लगाते हुए जनहित याचिका खारिज कर दी है और कहा है कि चार हफ्ते में हर्जाना राशि राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण में जमा किया जाय। यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल तथा न्यायमूर्ति प्रकाश पाड़िया की खंडपीठ ने हैदराबाद में साफ्टवेयर इंजीनियर की याचिका पर दिया है।
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विस्तार
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि लोग निजी लाभ के लिए मुकदमेबाजी में झूठ का सहारा लेने में संकोच नहीं करते। तथ्य छिपाकर और कोर्ट को गुमराह कर हित साधना चाह रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि याचिका में तथ्य छिपाना, अदालत के साथ कपट है। स्वच्छ हृदय से अदालत न आने वाला राहत नहीं बल्कि अर्थदंड पाने का हकदार है।
कोर्ट ने 25 हजार रुपये हर्जाना लगाते हुए जनहित याचिका खारिज कर दी है और कहा है कि चार हफ्ते में हर्जाना राशि राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण में जमा किया जाय। यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल तथा न्यायमूर्ति प्रकाश पाड़िया की खंडपीठ ने हैदराबाद में साफ्टवेयर इंजीनियर की याचिका पर दिया है।
कोर्ट ने कहा कि आजादी के पहले से सत्य न्याय व्यवस्था का अभिन्न अंग है। चिंता जताई कि पिछले 40 सालों में मूल्यों में काफी गिरावट आई है। वादकारी कोर्ट को गुमराह कर आदेश लेने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। सच का वह सम्मान नहीं रहा। ऐसा वादकारी जिसने अपने गंदे हाथों से न्याय व्यवस्था को दूषित करने की कोशिश की वह राहत का हकदार नहीं हो सकता। कोर्ट ने कहा सच छिपाना और झूठ का सहारा लेना दोनों एक समान है।
जनहित याचिका में आजमगढ़ के बरहद थाना क्षेत्र के गांव में सस्ते गल्ले की दुकान के आवंटन में भ्रष्टाचार की जांच कराने और विपक्षी को आवंटित दुकान दूसरे को देने की मांग की गई थी। याची हैदराबाद से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए स्वयं बहस कर रहा था।
सरकारी अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि इसी मांग को लेकर याची ने आपराधिक याचिका दायर की थी जो खारिज कर दी गई थी। इस तथ्य को छिपाकर जनहित याचिका दायर की है। याची का तर्क था कि याचिका सरकारी अधिकारियों के भ्रष्टाचार के खिलाफ है। विपक्षी के खिलाफ नहीं है। इसलिए पिछली याचिका की जानकारी देना जरूरी नहीं है।
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