जाजामऊ में बनेगा जसा सिंह का स्मारक स्थल

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फतेहपुर चौरासी के जाजामऊ गांव में ठा. जसा सिंह के किले के अवशेष। संवाद
– फोटो : UNNAO

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फतेहपुर चौरासी। प्रथम स्वाधीनता संग्राम में अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले फतेहपुर चौरासी के अमर शहीद राजा ठाकुर जसा सिंह का नाम भी शामिल है। क्षेत्रवासियों की लगातार मांग के बाद अब उनकी शहादत के 154 साल बाद उनका स्मारक बनाने की पहल हुई है। स्मारक बनाने का काम चुनाव बाद शुरू होगा।
फतेहपुर चौरासी ब्लाक के ग्राम जाजामऊ में उनका किला था। मिट्टी के टीले के रूप में उसके निशान अभी भी मौजूद हैं। सी एंड डीएस (कॉस्ट्रक्शन एंड डिजाइन सर्विसेज) के जेई अंकेश मिश्रा ने बताया कि अक्तूबर में पर्यटन विभाग ने ठा. जसा सिंह के स्मारक स्थल निर्माण को मंजूरी दी थी। निर्माण की जिम्मेदारी सी एंड डीएस को दी गई। 50 लाख रुपये का स्टीमेट भेजा गया था। विभाग ने मंदिर की मरम्मत के लिए बजट नहीं दिया। सिर्फ स्मारक स्थल के लिए 21 लाख रुपये स्वीकृत हुए हैं। इससे इंटर लॉकिंग मार्ग, बेंच, हैंडपंप, सोलर लाइट व अन्य काम कराए जाएंगे। विधानसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने से पहले पर्यटन विभाग ने पांच लाख रुपये जारी कर दिए थे। अब काम की शुरुआत चुनाव के बाद ही होगी।
फतेहपुर चौरासी। अमर शहीद राजा ठाकुर जसा सिंह ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे। जब तक जान रही वह अंग्रेजों से लड़ते रहे। 105 गांवों के राजा ठाकुर जसा सिंह ने नानाराव पेशवा के साथ मिलकर फिरंगियों से मोर्चा लिया था। बताया जाता है कि मिट्टी से बना उनका किला बेहद मजबूत था। अंग्रेजों ने इस किले को तोपों से उड़ाया था।
मनिकापुर निवासी राजा सिंह ने 1952 में ग्राम फरदापुर निवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बाबा विश्राम सिंह द्वारा जसा सिंह के बारे में बताई गई जानकारी को कलमबद्ध किया था। राजा सिंह के पुत्र कमलेश सिंह ने बताया कि इस हस्तलिपि में शहीद जसा सिंह का पूरा जीवन वृतांत है। 10 मई 1857 को नाना राव पेशवा ने सती प्रसाद के माध्यम से राजा जसा सिंह को एक संदेश भेजा था। इसमें लिखा था ‘रक्त कमल रोटी का टुकड़ा’ इसका अर्थ था कि अंग्रेजों को खदेड़ना है। नाना साहब के संदेश पर जसा सिंह ने अपना सैन्य बल बढ़ाया। एक नवंबर 1858 को गंगा किनारे मदारपुर में शिकार खेल रहे सात अंग्रेजों को जसा सिंह के तोपची मकनपुर निवासी मोहम्मद नासिर ने उड़ा दिया। इससे झल्लाए अंग्रेज जनरल हैवलाक ने जसा सिंह व उनके खानदानी भाई झूलूमऊ निवासी कस्तूरी सिंह को हिट लिस्ट में दर्ज किया। (संवाद)
कानपुर में नाना साहब और अंग्रेजों के बीच लड़ाई के बाद नाना साहब और तात्या टोपे स्वतंत्रता सेनानियों के साथ फतेहपुर चौरासी आए थे। जसा सिंह ने उनकी मदद की। तब जसा सिंह 105 गांव के राजा थे। लखनऊ में सेनानियों ने तत्कालीन जनरल कैंपवेल बंधक बना लिया। उसे मुक्त कराने के लिए कानपुर से जनरल हैवलाक ने फौज के साथ लखनऊ कूच किया। सूचना पर जसा सिंह ने 1200 सिपाहियों के साथ अकरमपुर पहुंचकर हैवलाक की सेना पर आक्रमण किया। अंग्रेजी सेना से 21 घंटे की लड़ाई में अंग्रेजों के पैर उखड़ गए। जनरल हैवलाक छिपते हुए वसीरतगंज पहुंच गया। जसा सिंह के पास सिर्फ 243 सिपाही बचे जो युद्ध लड़ने की स्थिति में थे। तब डौडिया खेड़ा के राजा राव रामबक्श सिंह के खानदानी भवानी सिंह सेना का संचालन करने लगे।
हैवलाक के जाने के बाद जसा सिंह अपने सैनिकों सहित उन्नाव शहर के भूरी देवी मंदिर के पास बनी सराय में रुके। 29 जुलाई 1857 की सुबह एक अंग्रेज सिपाही ने पेड़ के पीछे छिपकर जसा सिंह के बाएं हाथ में गोली मार दी। हालांकि उन्होंने एक हाथ से ही तलवार चलाते हुए तमाम अंग्रेज सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था। बाद में वह शहीद हो गए थे। इस युद्ध में उनके पुत्र नरपति सिंह भी अंग्रेजों से मोर्चा लेते हुए शहीद हुए। अंग्रेजों ने उनके किले को तोप से गोले दाग कर ध्वस्त कर दिया था।

यह भी पढ़ें -  पिता-पुत्रों समेत सात पर धोखाधड़ी व बलवा की रिपोर्ट

फतेहपुर चौरासी। प्रथम स्वाधीनता संग्राम में अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले फतेहपुर चौरासी के अमर शहीद राजा ठाकुर जसा सिंह का नाम भी शामिल है। क्षेत्रवासियों की लगातार मांग के बाद अब उनकी शहादत के 154 साल बाद उनका स्मारक बनाने की पहल हुई है। स्मारक बनाने का काम चुनाव बाद शुरू होगा।

फतेहपुर चौरासी ब्लाक के ग्राम जाजामऊ में उनका किला था। मिट्टी के टीले के रूप में उसके निशान अभी भी मौजूद हैं। सी एंड डीएस (कॉस्ट्रक्शन एंड डिजाइन सर्विसेज) के जेई अंकेश मिश्रा ने बताया कि अक्तूबर में पर्यटन विभाग ने ठा. जसा सिंह के स्मारक स्थल निर्माण को मंजूरी दी थी। निर्माण की जिम्मेदारी सी एंड डीएस को दी गई। 50 लाख रुपये का स्टीमेट भेजा गया था। विभाग ने मंदिर की मरम्मत के लिए बजट नहीं दिया। सिर्फ स्मारक स्थल के लिए 21 लाख रुपये स्वीकृत हुए हैं। इससे इंटर लॉकिंग मार्ग, बेंच, हैंडपंप, सोलर लाइट व अन्य काम कराए जाएंगे। विधानसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने से पहले पर्यटन विभाग ने पांच लाख रुपये जारी कर दिए थे। अब काम की शुरुआत चुनाव के बाद ही होगी।

फतेहपुर चौरासी। अमर शहीद राजा ठाकुर जसा सिंह ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे। जब तक जान रही वह अंग्रेजों से लड़ते रहे। 105 गांवों के राजा ठाकुर जसा सिंह ने नानाराव पेशवा के साथ मिलकर फिरंगियों से मोर्चा लिया था। बताया जाता है कि मिट्टी से बना उनका किला बेहद मजबूत था। अंग्रेजों ने इस किले को तोपों से उड़ाया था।

मनिकापुर निवासी राजा सिंह ने 1952 में ग्राम फरदापुर निवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बाबा विश्राम सिंह द्वारा जसा सिंह के बारे में बताई गई जानकारी को कलमबद्ध किया था। राजा सिंह के पुत्र कमलेश सिंह ने बताया कि इस हस्तलिपि में शहीद जसा सिंह का पूरा जीवन वृतांत है। 10 मई 1857 को नाना राव पेशवा ने सती प्रसाद के माध्यम से राजा जसा सिंह को एक संदेश भेजा था। इसमें लिखा था ‘रक्त कमल रोटी का टुकड़ा’ इसका अर्थ था कि अंग्रेजों को खदेड़ना है। नाना साहब के संदेश पर जसा सिंह ने अपना सैन्य बल बढ़ाया। एक नवंबर 1858 को गंगा किनारे मदारपुर में शिकार खेल रहे सात अंग्रेजों को जसा सिंह के तोपची मकनपुर निवासी मोहम्मद नासिर ने उड़ा दिया। इससे झल्लाए अंग्रेज जनरल हैवलाक ने जसा सिंह व उनके खानदानी भाई झूलूमऊ निवासी कस्तूरी सिंह को हिट लिस्ट में दर्ज किया। (संवाद)

कानपुर में नाना साहब और अंग्रेजों के बीच लड़ाई के बाद नाना साहब और तात्या टोपे स्वतंत्रता सेनानियों के साथ फतेहपुर चौरासी आए थे। जसा सिंह ने उनकी मदद की। तब जसा सिंह 105 गांव के राजा थे। लखनऊ में सेनानियों ने तत्कालीन जनरल कैंपवेल बंधक बना लिया। उसे मुक्त कराने के लिए कानपुर से जनरल हैवलाक ने फौज के साथ लखनऊ कूच किया। सूचना पर जसा सिंह ने 1200 सिपाहियों के साथ अकरमपुर पहुंचकर हैवलाक की सेना पर आक्रमण किया। अंग्रेजी सेना से 21 घंटे की लड़ाई में अंग्रेजों के पैर उखड़ गए। जनरल हैवलाक छिपते हुए वसीरतगंज पहुंच गया। जसा सिंह के पास सिर्फ 243 सिपाही बचे जो युद्ध लड़ने की स्थिति में थे। तब डौडिया खेड़ा के राजा राव रामबक्श सिंह के खानदानी भवानी सिंह सेना का संचालन करने लगे।

हैवलाक के जाने के बाद जसा सिंह अपने सैनिकों सहित उन्नाव शहर के भूरी देवी मंदिर के पास बनी सराय में रुके। 29 जुलाई 1857 की सुबह एक अंग्रेज सिपाही ने पेड़ के पीछे छिपकर जसा सिंह के बाएं हाथ में गोली मार दी। हालांकि उन्होंने एक हाथ से ही तलवार चलाते हुए तमाम अंग्रेज सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था। बाद में वह शहीद हो गए थे। इस युद्ध में उनके पुत्र नरपति सिंह भी अंग्रेजों से मोर्चा लेते हुए शहीद हुए। अंग्रेजों ने उनके किले को तोप से गोले दाग कर ध्वस्त कर दिया था।

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