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केस- एक- झूंसी के रहने वाले आलोक शर्मा (परिवर्तित नाम) का बेटा बीटेक का छात्र है। अंतिम सेेमेस्टर में उसकी परफार्मेंस काफी खराब थी। उसके पीछे सबसे बड़ा कारण था कि वह ज्यादा समय मोबाइल फोन पर देता था। रिजल्ट आने के बाद से वह लगातार माता पिता से महंगे मोबाइल की मांग कर रहा था। पिता के मना करने पर उसने घर में फांसी के फंदे पर लटककर जान देने की कोशिश की।
केस दो- तेलियरगंज के रहने वाले ओम प्रकाश (परिवर्तित नाम) की बेटी नोएडा के एक कालेज से बीबीए की छात्रा है। दोस्तों को देखते हुए उसने भी घर वालों से महंगे मोबाइल की मांग की। लेकिन जब घर वालों ने मना कर दिया तो उसने एक दिन घर वालों को वीडियो कॉल की और उनके सामने अपनी सारी किताबों में आग लगा दी। इसके बाद उसका मोबाइल नशा मुक्ति केंद्र में इलाज चल रहा है।
केस तीन- धूमनगंज के रहने वाले राजेश श्रीवास्तव के आठ साल के बेटे को मोबाइल फोन की ऐसी लत लग गई कि मोबाइल न मिलने पर वह हिंसक हो जाता था। घर के सदस्यों को दांत से काटने लगता था। खाना-पीना भी छोड़ देता था। इस पर परिवार के लोग उसे लेकर मोबाइल नशा मुक्ति केंद्र पहुंचे। जहां पर चिकित्सकों ने उसकी काउंसलिंग कर उपचार शुरू किया।
कोरोना काल में ऑनलाइन पढ़ाई ने विद्यार्थियों के समय की बचत तो की है, लेकिन इसके दुष्परिणाम भी देखने को मिल रहे हैं। लगातार मोबाइल पर सक्रिय रहने से बच्चों की याददाश्त पर असर पड़ रहा है। इसके अलावा मोबाइल की लत ने बच्चों को हिंसक बना दिया है। शहर के कॉल्विन अस्पताल में ऐसे हर माह लगभग सौ से अधिक ऐसे मामले आ रहे हैं। मोबाइल की लत के बढ़ते मामलों से चिकित्सक भी हैरान हैं।
कॉल्विन अस्पताल में राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रम के अंतर्गत चल रहे मोबाइल नशा मुक्ति केंद्र पर कोरोना की पहली और दूसरी लहर के बाद से ही मोबाइल के लत के सबसे ज्यादा मामले आ रहे हैं। प्रतिदिन चार से पांच अभिभावक अपने बच्चों को लेकर अस्पताल पहुंच रहे हैं। केंद्र प्रभारी डॉ. राकेश पासवान के अनुसार इन बच्चों में चिड़चिड़पन, पढ़ाई में ध्यान नहीं देना, मोबाइल केचक्कर में हिंसक हो जाना, खाने पीने से दूरी बनाना और मेमोरी लॉस जैसी समस्या मिल रही है। स्कूल से भी बच्चाें की इस समस्या को लेकर शिकायतें घर पहुंच रही हैं।
नशा मुक्ति केंद्र प्रभारी का कहना है किमोबाइल का प्रयोग करते समय बच्चे बाकी चीजों पर ध्यान नहीं देते हैं। उनकेदिमाग में प्रमुख रूप से सिर्फ मोबाइल से संबंधित चीजें ही होती हैं। एक ऐसा मामला भी सामने आया, जिसमें मनचाहा मोबाइल नहीं मिलने पर एक छात्र ने आत्महत्या तक का प्रयास किया, जिससे परिवार सदमे में आ गया। इस प्रकार की मनोदशा में जो पढ़ा लिखा रहता है, वह लंबे समय तक याद नहीं रह पाता है। इसके साथ ही मोबाइल से निकलने वाली किरणें छोटे बच्चों पर नकारात्मक प्रभावी डालती हैं। इससे शार्ट और लांग टर्म मेमोरी लॉस की समस्या आती है।
आंखों की भी हो रही बीमारी
डॉ. राकेश पासवान के मुताबिक बच्चों द्वारा कभी-कभी मोबाइल के अधिक प्रयोग से उनमें आंखों से संबंधित बीमारियां बढ़ जाती हैं। जिसमें मिसथेगस और डिप्लोपिया (एक साथ दो चीजें दिखने की समस्या) की समस्या उत्पन्न हो जाती है। इसके अलावा आंखों से आंसू निकलना, सुनने में दिक्कत, गुस्सा और चिड़चिड़ापन शामिल है।
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केस- एक- झूंसी के रहने वाले आलोक शर्मा (परिवर्तित नाम) का बेटा बीटेक का छात्र है। अंतिम सेेमेस्टर में उसकी परफार्मेंस काफी खराब थी। उसके पीछे सबसे बड़ा कारण था कि वह ज्यादा समय मोबाइल फोन पर देता था। रिजल्ट आने के बाद से वह लगातार माता पिता से महंगे मोबाइल की मांग कर रहा था। पिता के मना करने पर उसने घर में फांसी के फंदे पर लटककर जान देने की कोशिश की।
केस दो- तेलियरगंज के रहने वाले ओम प्रकाश (परिवर्तित नाम) की बेटी नोएडा के एक कालेज से बीबीए की छात्रा है। दोस्तों को देखते हुए उसने भी घर वालों से महंगे मोबाइल की मांग की। लेकिन जब घर वालों ने मना कर दिया तो उसने एक दिन घर वालों को वीडियो कॉल की और उनके सामने अपनी सारी किताबों में आग लगा दी। इसके बाद उसका मोबाइल नशा मुक्ति केंद्र में इलाज चल रहा है।
केस तीन- धूमनगंज के रहने वाले राजेश श्रीवास्तव के आठ साल के बेटे को मोबाइल फोन की ऐसी लत लग गई कि मोबाइल न मिलने पर वह हिंसक हो जाता था। घर के सदस्यों को दांत से काटने लगता था। खाना-पीना भी छोड़ देता था। इस पर परिवार के लोग उसे लेकर मोबाइल नशा मुक्ति केंद्र पहुंचे। जहां पर चिकित्सकों ने उसकी काउंसलिंग कर उपचार शुरू किया।
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