हाईकोर्ट : संज्ञेय अपराध के होने पर एफआईआर रद्द करना ठीक नहीं

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अमर उजाला नेटवर्क, प्रयागराज
Published by: विनोद सिंह
Updated Sun, 06 Feb 2022 01:28 AM IST

सार

याची के खिलाफ झांसी के सिपरी थाने में गैर इरादन हत्या के आरोप में एफआईआर दर्ज कराई गई है। प्राथमिकी के अनुसार विद्युत आपूर्ति के अचानक बहाल होने से मरम्मत कार्य में लगे लाइनमैन की से मौत हो गई।

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि संज्ञेय अपराध होने पर एफआईआर रद्द करना ठीक नहीं है। एफआईआर से ही प्रथम दृष्टया संज्ञेय अपराध कारित होने का पता चलता है और मामले में जांच जरूरी हो जाती है। यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति अजय त्यागी ने झांसी के सिपरी थाने के गोविंद द्विवेदी की याचिका को खारिज करते हुए दिया है।

याची के खिलाफ झांसी के सिपरी थाने में गैर इरादन हत्या के आरोप में एफआईआर दर्ज कराई गई है। प्राथमिकी के अनुसार विद्युत आपूर्ति के अचानक बहाल होने से मरम्मत कार्य में लगे लाइनमैन की से मौत हो गई। याची ने याचिका को इस आधार पर चुनौती दी थी कि दो व्यक्तियों ने एक ही लाइन पर शटडाउन की मांग की थी।

उसमें से एक ने काम पूरा कर लिया था और बिजली आपूर्ति को फिर से बहाल करने का अनुरोध किया। इसलिए विद्युत आपूर्ति बहाल कर दी गई। याची निर्दोष है। इसमें उसकी कोई गलती नहीं है। जबकि, सरकारी अधिवक्ता ने इसका विरोध किया। कोर्ट ने पाया कि एफआईआर के जरिए ही प्रथम दृष्टया संज्ञेय अपराध का पता चलता है।

अब यह सवाल है कि क्या कोई लापरवाही हुई या जानबूझकर कार्य किया गया था। सभी ऐसे प्रश्न हैं, जो जांच का विषय हैं। जांच हुए बिना एफआईआर रद्द करना उचित नहीं होगा। इस आधार पर याचिका पोषणीय नहीं और उसे खारिज किया जाता है। हालांकि, याचिकाकर्ता उचित फोरम के समक्ष प्रस्तुत कर राहत की मांग कर सकता है।

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विस्तार

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि संज्ञेय अपराध होने पर एफआईआर रद्द करना ठीक नहीं है। एफआईआर से ही प्रथम दृष्टया संज्ञेय अपराध कारित होने का पता चलता है और मामले में जांच जरूरी हो जाती है। यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति अजय त्यागी ने झांसी के सिपरी थाने के गोविंद द्विवेदी की याचिका को खारिज करते हुए दिया है।

याची के खिलाफ झांसी के सिपरी थाने में गैर इरादन हत्या के आरोप में एफआईआर दर्ज कराई गई है। प्राथमिकी के अनुसार विद्युत आपूर्ति के अचानक बहाल होने से मरम्मत कार्य में लगे लाइनमैन की से मौत हो गई। याची ने याचिका को इस आधार पर चुनौती दी थी कि दो व्यक्तियों ने एक ही लाइन पर शटडाउन की मांग की थी।

उसमें से एक ने काम पूरा कर लिया था और बिजली आपूर्ति को फिर से बहाल करने का अनुरोध किया। इसलिए विद्युत आपूर्ति बहाल कर दी गई। याची निर्दोष है। इसमें उसकी कोई गलती नहीं है। जबकि, सरकारी अधिवक्ता ने इसका विरोध किया। कोर्ट ने पाया कि एफआईआर के जरिए ही प्रथम दृष्टया संज्ञेय अपराध का पता चलता है।

अब यह सवाल है कि क्या कोई लापरवाही हुई या जानबूझकर कार्य किया गया था। सभी ऐसे प्रश्न हैं, जो जांच का विषय हैं। जांच हुए बिना एफआईआर रद्द करना उचित नहीं होगा। इस आधार पर याचिका पोषणीय नहीं और उसे खारिज किया जाता है। हालांकि, याचिकाकर्ता उचित फोरम के समक्ष प्रस्तुत कर राहत की मांग कर सकता है।

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