लखनऊ, 18 अगस्त 2023। यह सिर्फ सिलाई मशीन नहीं, बल्कि मेरे जीवन का आधार है। टीबी की बीमारी के चलते अपनी आमदनी का एकमात्र जरिया, सिलाई मशीन जो मुझे बेचनी पड़ी थी वह जिला क्षय रोग अधिकारी डा.ए.के. सिंघल के माध्यम से निक्षय मित्र ने मुझे वापिस देकर अपने पैरों पर खड़े होने की हिम्मत दी है। बीमारी से उबरने के बाद अब मुझे विश्वास है कि मेरी जिन्दगी एक बार फिर गति पकड़ेगी। यह कहना है टीबी से ठीक हो चुकी 42 वर्षीय सीमा (बदला हुआ नाम) का।
सीमा के पति की मृत्यु हो चुकी है और दो बेटियां हैं। उन्हें गले में गांठ की टीबी यानि एक्स्ट्रा-पल्मोनरी टीबी हो गयी थी। वह बताती हैं कि शुरुआत में उन्होंने कुछ निजी चिकित्सकों को दिखाया। हांलाकि डॉक्टर ने टीबी की पुष्टि नहीं की पर इलाज में काफी पैसा खर्च हुआ। सीमा अपना घर चलाने के लिए सिलाई करती थीं लेकिन महंगे इलाज के चलते उन्हें अपनी सिलाई मशीन बेचनी पड़ी। एक दिन मेडिकल स्टोर से दवाएं लेते समय पूछा तो पता चलाकि वह इतने समय से वह टीबी की दवाएं ले रही थीं। सीमा बिना समय गंवाए मेडिकल कॉलेज पहुँचीं जहाँ जांच के बाद सही इलाज शुरू किया गया। उन्हें उनके घर के निकट राजेन्द्र नगर टीबी सेंटर पर भेज दिया गया जहाँ इलाज में टीबीएचवी राम प्रताप तथा आशा कार्यकर्ता सुनीता कुमारी ने बड़ी मदद की और अब वह पूरी तरह स्वस्थ हैं।
सीमा का कहना है कि सरकारी अस्पताल से मुझे न सिर्फ भरोसे का इलाज मिला बल्कि पोषण के लिए राशि और निक्षय मित्र के माध्यम से अतिरिक्त सहायता भी मिली। मुझे डर था कि कहीं मेरी बेटियों को भी टीबी न हो जाए पर डॉक्टर ने समझाया कि एक्स्ट्रापल्मोनरी टीबी संक्रामक नहीं होती। इलाज के दौरान मेरे खाते में निक्षय पोषण योजना के तहत हर माह 500 रुपये भी आते रहे। वह कहती हैं कि “पोषण के लिए सरकार हर क्षय रोगी की मदद कर रही है लेकिन आजीविका में जो सहयोग मिला, उससे मेरी आने वाली जिन्दगी संवर जाएगी।“
टीबी रोगी जी सकते हैं सम्मानजनक जीवन
जिला क्षय रोग अधिकारी का कहना है कि सीमा की मदद के लिए आगे आए निक्षय मित्र ने अपना नाम गोपनीय रखा है लेकिन उनका यह प्रयास बेहद सराहनीय है। कई ऐसे क्षय रोगी हैं जो बीमारी के साथ-साथ गरीबी और जीवन यापन से जुड़ी कई अन्य परेशानियों का सामना कर रहे हैं। इनमें सीमा जैसी कई महिलाएं भी हैं जिन्हें अतिरिक्त सहयोग की बहद जरूरत है। यदि लोग निक्षय मित्र बनकर इनकी मदद करें तो हर टीबी रोगी स्वस्थ होकर एक सम्मानपूर्ण जीवन जी सकता है।
डॉ. सिंघल बताते हैं कि कोई भी व्यक्ति या संस्था टीबी रोगियों को गोद लेकर उनकी मदद कर सकती है। इसके लिए भारत सरकार की वेबसाइट www.tbcindia.gov.in पर प्रधानमंत्री टीबी मुक्त भारत अभियान के माध्यम से अपना पंजीकरण निक्षय मित्र के रुप में करना होता है अथवा व्यक्तिगत रूप से निकटतम टीबी यूनिट पर एसटीएस या जनपद स्तर पर डिस्ट्रिक्ट पीपीएम कोऑर्डिनेटर संपर्क स्थापित कर अपना पंजीकरण करा सकते हैं। निक्षयमित्रों द्वारा टीबी रोगियों को पोषाहार एवं आवश्यक मदद की जाती है। उन्होंने बताया कि वर्तमान में जिले में 14,320 टीबी रोगी हैं जिनमें से लगभग 70 फीसद टीबी मरीजों को निक्षयमित्रों द्वारा सहयोग प्रदान किया जा रहा है।
टीबी को जड़ से खत्म करने के लिए सामूहिक प्रयास की जरूरत
जिला क्षय रोग अधिकारी का कहना है कि टीबी कभी भी किसी को भी हो सकती है। ऐसे में रोगियों से भेदभाव करने की बजाय हमें मिलकर इस बीमारी के खिलाफ कई मोर्चों पर एक साथ लड़ना होगा।सरकारी स्वास्थ्य केन्द्रों पर टीबी की जांच और इलाज उपलब्ध है। टीबी के लिए सरकारी इलाज सबसे भरोसेमंद है क्यूंकि इसमें रोगी को उच्च गुणवत्ता की दवाइयों के साथ-साथ नियमित परामर्श, स्वस्थ होने तक पोषण के लिए राशि और निक्षय मित्र का सहयोग भी मिल रहा है।