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उन्नाव। उद्यान विभाग गंगा कटरी क्षेत्र को केला बेल्ट के रूप में विकसित कर रहा है। इसके लिए टिश्यू कल्चर पौध लगाई जा रहीं हैं। किसान भी परंपरागत खेती छोड़कर नकदी फसल की ओर बढ़ रहे हैं। दो साल में केला की खेती का कटरी में क्षेत्रफल 30 हेक्टेयर बढ़ा है। प्रति हेक्टेयर किसान सालाना एक लाख रुपये तक की बचत कर रहे हैं।
एक समय था जब जिले में किसान केले की खेती को घाटे का सौदा समझते थे लेकिन टिश्यू कल्चर केला की पौध ने किसानों के मिथक को तोड़ दिया है। बीघापुर, सुमेरपुर, सिकंदरपुर कर्ण में गंगा से जुड़े गांवों मेें केले की खेती बड़े पैमाने पर हो रही है। वहीं पुरवा में भी किसान इसकी खेती करने लगे हैं। जिले में 150 हेक्टेयर में केले की खेती होती है। खेती के लिए जो सब्सिडी मिलती है वह किसानों के लिए बहुत मुफीद है।
ये है सब्सिडी का प्रावधान
केले का बाग लगाने के लिए दो बार में किसानों को सब्सिडी मिलती है। पहले वर्ष रोपण के दौरान 30,738 रुपये तथा दूसरे वर्ष खेत के रखरखाव के लिए 10,246 रुपये सब्सिडी मिलती है।
एक हेक्टेयर में लगते 3086 पौधे
केले के बाग के लिए किसान मेड़ विधि से खेती करते हैं। इसमें मेड़ पर चार से छह फीट की दूरी पर पौधे लगाए जाते हैं। एक हेक्टेयर में करीब 3086 पौधे लगते हैं तथा 10 माह में पैदावार होने लगती है। जिले में अक्टूबर में जो केला बाजार में आता है, उससे किसानों को खासा मुनाफा होता है। एक पेड़ से करीब 28 किलो केला मिलता है। साथ ही एक हेक्टेयर में 750 से 775 क्विंटल तक केले की पैदावार होती है।
एक लाख की हुई बचत
बीघापुर के गनेशीखेड़ा निवासी राजू सिंह उन्नतशील किसान हैं। वह पांच साल से केले की खेती कर रहे हैं। वह तीन हेक्टेयर में केले की खेती कर रहे हैं। एक हेक्टेयर में 775 क्विंटल केला पैदा हुआ और एक लाख रुपये की बचत हुई। अब वह नर्सरी तैयार कर किसानों को दे रहे हैं।
वर्जन
केले की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। ये नकदी फसल है और जिले में किसान तेजी से इसकी खेती कर रहे हैं। पहले केले की खेती का रकबा 50 हेक्टेयर था जो अब बढ़कर 150 हेक्टेयर हो गया है। गंगा कटरी के क्षेत्रों को ही केला बेल्ट के रूप में विकसित किया जा रहा है।- जयराम वर्मा, जिला उद्यान अधिकारी
उन्नाव। उद्यान विभाग गंगा कटरी क्षेत्र को केला बेल्ट के रूप में विकसित कर रहा है। इसके लिए टिश्यू कल्चर पौध लगाई जा रहीं हैं। किसान भी परंपरागत खेती छोड़कर नकदी फसल की ओर बढ़ रहे हैं। दो साल में केला की खेती का कटरी में क्षेत्रफल 30 हेक्टेयर बढ़ा है। प्रति हेक्टेयर किसान सालाना एक लाख रुपये तक की बचत कर रहे हैं।
एक समय था जब जिले में किसान केले की खेती को घाटे का सौदा समझते थे लेकिन टिश्यू कल्चर केला की पौध ने किसानों के मिथक को तोड़ दिया है। बीघापुर, सुमेरपुर, सिकंदरपुर कर्ण में गंगा से जुड़े गांवों मेें केले की खेती बड़े पैमाने पर हो रही है। वहीं पुरवा में भी किसान इसकी खेती करने लगे हैं। जिले में 150 हेक्टेयर में केले की खेती होती है। खेती के लिए जो सब्सिडी मिलती है वह किसानों के लिए बहुत मुफीद है।
ये है सब्सिडी का प्रावधान
केले का बाग लगाने के लिए दो बार में किसानों को सब्सिडी मिलती है। पहले वर्ष रोपण के दौरान 30,738 रुपये तथा दूसरे वर्ष खेत के रखरखाव के लिए 10,246 रुपये सब्सिडी मिलती है।
एक हेक्टेयर में लगते 3086 पौधे
केले के बाग के लिए किसान मेड़ विधि से खेती करते हैं। इसमें मेड़ पर चार से छह फीट की दूरी पर पौधे लगाए जाते हैं। एक हेक्टेयर में करीब 3086 पौधे लगते हैं तथा 10 माह में पैदावार होने लगती है। जिले में अक्टूबर में जो केला बाजार में आता है, उससे किसानों को खासा मुनाफा होता है। एक पेड़ से करीब 28 किलो केला मिलता है। साथ ही एक हेक्टेयर में 750 से 775 क्विंटल तक केले की पैदावार होती है।
एक लाख की हुई बचत
बीघापुर के गनेशीखेड़ा निवासी राजू सिंह उन्नतशील किसान हैं। वह पांच साल से केले की खेती कर रहे हैं। वह तीन हेक्टेयर में केले की खेती कर रहे हैं। एक हेक्टेयर में 775 क्विंटल केला पैदा हुआ और एक लाख रुपये की बचत हुई। अब वह नर्सरी तैयार कर किसानों को दे रहे हैं।
वर्जन
केले की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। ये नकदी फसल है और जिले में किसान तेजी से इसकी खेती कर रहे हैं। पहले केले की खेती का रकबा 50 हेक्टेयर था जो अब बढ़कर 150 हेक्टेयर हो गया है। गंगा कटरी के क्षेत्रों को ही केला बेल्ट के रूप में विकसित किया जा रहा है।- जयराम वर्मा, जिला उद्यान अधिकारी
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