Tulsidas Jayanti 2022: तीर्थनगरी सोरोंजी ही है तुलसीदास की जन्मस्थली, विद्वानों ने गिनाए प्रमाण

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महाकवि तुलसीदास का गुरुवार को श्रावण शुक्ल सप्तमी पर 512 वां जन्मदिवस है। श्रावण शुक्ल सप्तमी शुक्रवार संवत 1568, एक अगस्त 1511 को कासगंज के शूकर क्षेत्र सोरोंजी के मोहल्ला योग मार्ग में पंडित आत्माराम की पत्नी माता हुलसी ने तुलसीदास को जन्म दिया। रामचरित मानस, सरकारी गजेटियरों व अन्य शोध से स्पष्ट हो चुका है कि सोरोंजी ही तुलसीदास की जन्मभूमि है। इस पर लोगों के अकाट्य प्रमाण हैं, लेकिन इन प्रमाणों के बावजूद प्रदेश सरकार के जिम्मेदार ट्वीट में राजापुर को तुलसी का जन्मस्थान बता रहे हैं।

तुलसी की जीवनी में सदैव सोरोंजी जन्मस्थान छपता रहा 

हिंदी सलाहकार समिति के सदस्य प्रोफेसर डॉ. योगेंद्र मिश्र ने बताया कि शूकर क्षेत्र सोरोंजी में संत तुलसीदास का जन्म हुआ यह सत्य सभी को मुक्त भाव से स्वीकारना होगा। इस सत्य को छीनने का अधिकार किसी को नहीं होना चाहिए। संत तुलसीदास ने 36 वर्ष की अवस्था में सोरोंजी से प्रस्थान किया और उन्होंने 63 वर्ष की अवस्था तक अयोध्या, प्रयाग, मथुरा, कासगंज आदि स्थानों में भ्रमण किया। 89 वर्ष की अवस्था तक चित्रकूट व यमुना किनारे निवास करते रहे। 

डॉ. योगेंद्र मिश्र ने बताया कि ब्रिटिशकालीन गजेटियर 1874, 1886, 1908, 1909 सभी में तुलसीदास के बारे में स्पष्ट लिखा है कि अकबर के शासनकाल में सोरोंजी परगना अलीगंज जिला एटा के निवासी यमुना किनारे उस जंगल में आए जहां राजापुर अब स्थित है। सोरोंजी से आकर तुलसीदास ने राजापुर बसाया। सन 1810 में कोलकाता से श्रीरामचरित मानस का प्रथम प्रकाशन हुआ। इसके बाद वैंकटेश्वर मुंबई से प्रकाशन हुआ। तुलसी साहित्य की जीवनी में सदैव सोरोंजी जन्मस्थान छपता रहा है। हिंदी साहित्य का जगत सोरोंजी को ही तुलसीदास का जन्मस्थान मानता है।

सोरोंजी में है तुलसीदास का गर्भगृह

सोरोंजी के तीर्थ पुरोहित पंडित भारत किशोर दुबे कहा कि भगवान वराह की इस पावन धरा पर तुलसीदास ने जन्म लिया। उनके गर्भगृह के अवशेष आज भी मोहल्ला योग मार्ग में स्थिति हैं। उनके पिता पंडित आत्माराम शुक्ला, सोरोंजी के समीपवर्ती गांव श्यामसर के रहने वाले थे। बाद में वह अपने नाना के घर मोहल्ला योग मार्ग में आकर रहने लगे। उन्होंने बताया कि तुलसीदास ने यहीं जन्म लिया और अपने गुरु नरहरि से पाठशाला में बार बार रामकथा सुनी। उन्होंने राजापुर को बसाकर अपनी साधना भूमि व कर्मभूमि बनाया। उनके जन्मस्थान को राजापुर बताना भूल है। इसमें सुधार आवश्यक है।

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‘मैं पुनि निज गुरु सन सुनी कथा सो सूकर खेत

तीर्थ पुरोहित पंडित अखिलेश तिवारी ने कहा कि तीर्थनगरी में आकर तमाम शोधार्थियों ने शोध किया है और सोरोंजी को संत तुलसीदास की जन्मभूमि माना है। स्वयं संत तुलसीदास ने रामचरित मानस में लिखा है कि- मैं पुनि निज गुरु सन सुनी कथा सो सूकरखेत, समुझी नहिं तसि बालपन तब अति रहउं अचेत। उन्होंने इस दोहे माध्यम से बताया कि सूकरक्षेत्र में बालपन में संत तुलसीदास ने अपने गुरु से रामकथा सुनी, लेकिन बालअवस्था के कारण समझ नहीं पाए। लगातार इसे सुनते हुए भाषा बद्ध किया है। उनका जन्म सोरों जी में ही हुआ है।

विस्तार

महाकवि तुलसीदास का गुरुवार को श्रावण शुक्ल सप्तमी पर 512 वां जन्मदिवस है। श्रावण शुक्ल सप्तमी शुक्रवार संवत 1568, एक अगस्त 1511 को कासगंज के शूकर क्षेत्र सोरोंजी के मोहल्ला योग मार्ग में पंडित आत्माराम की पत्नी माता हुलसी ने तुलसीदास को जन्म दिया। रामचरित मानस, सरकारी गजेटियरों व अन्य शोध से स्पष्ट हो चुका है कि सोरोंजी ही तुलसीदास की जन्मभूमि है। इस पर लोगों के अकाट्य प्रमाण हैं, लेकिन इन प्रमाणों के बावजूद प्रदेश सरकार के जिम्मेदार ट्वीट में राजापुर को तुलसी का जन्मस्थान बता रहे हैं।

तुलसी की जीवनी में सदैव सोरोंजी जन्मस्थान छपता रहा 

हिंदी सलाहकार समिति के सदस्य प्रोफेसर डॉ. योगेंद्र मिश्र ने बताया कि शूकर क्षेत्र सोरोंजी में संत तुलसीदास का जन्म हुआ यह सत्य सभी को मुक्त भाव से स्वीकारना होगा। इस सत्य को छीनने का अधिकार किसी को नहीं होना चाहिए। संत तुलसीदास ने 36 वर्ष की अवस्था में सोरोंजी से प्रस्थान किया और उन्होंने 63 वर्ष की अवस्था तक अयोध्या, प्रयाग, मथुरा, कासगंज आदि स्थानों में भ्रमण किया। 89 वर्ष की अवस्था तक चित्रकूट व यमुना किनारे निवास करते रहे। 

डॉ. योगेंद्र मिश्र ने बताया कि ब्रिटिशकालीन गजेटियर 1874, 1886, 1908, 1909 सभी में तुलसीदास के बारे में स्पष्ट लिखा है कि अकबर के शासनकाल में सोरोंजी परगना अलीगंज जिला एटा के निवासी यमुना किनारे उस जंगल में आए जहां राजापुर अब स्थित है। सोरोंजी से आकर तुलसीदास ने राजापुर बसाया। सन 1810 में कोलकाता से श्रीरामचरित मानस का प्रथम प्रकाशन हुआ। इसके बाद वैंकटेश्वर मुंबई से प्रकाशन हुआ। तुलसी साहित्य की जीवनी में सदैव सोरोंजी जन्मस्थान छपता रहा है। हिंदी साहित्य का जगत सोरोंजी को ही तुलसीदास का जन्मस्थान मानता है।

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