शहीदी दिवस पर लंगर, प्रसाद छका

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उन्नाव। पांचवें सिख गुरु अर्जनदेव जी महाराज के शहीदी दिवस पर शहर के गुरुद्वारे में सुबह शबद-कीर्तन के बाद लंगर और प्रसाद वितरण हुआ। लोगों ने गुरु ग्रंथ साहिब के समक्ष माथा ठेका।
गुरु सिंह सभा के अध्यक्ष अरविंद सिंह ने बताया कि अर्जन देव सिखों के पांचवें गुरु थे। गुरु परंपरा का पालन करते हुए वह कभी भी गलत चीजों के आगे नहीं झुके। उन्होंने शरणागत की रक्षा के लिए स्वयं को बलिदान कर देना स्वीकार किया। मुगल शासक जहांगीर के आगे झुुके नहीं। वह हमेशा मानव सेवा के पक्षधर रहे। सिख धर्म में वह सच्चे बलिदानी थे। उनसे ही सिख धर्म में बलिदान की परंपरा की शुरुआत हुई। गुरु अर्जन देव का जन्म 15 अप्रैल 1563 में हुआ था। इनके पिता रामदास भी सिखों के चौथे गुरु थे।
अर्जन देव ने ही 1581 में अमृतसर स्थित हरमंदिर साहिब गुरुद्वारे की नींव रखी थी, जिसे स्वर्ण मंदिर के नाम से जाना जाता है। मुगल बादशाह अकबर की मृत्यु के बाद साल 1605 में जहांगीर मुगल साम्राज्य का बादशाह बना। उसने अर्जन देव पर बगावत का आरोप लगा बंदी बना लिया। 30 मई 1606 को उन्हें तवे पर बैठाकर उनके शरीर पर गर्म तेल डाला गया। गुरु के मुर्छित होने पर उन्हें रावी नदी की धारा में बहाया गया। उसी नदी पर गुरुद्वारा डेरा साहिब का निर्माण कराया गया है। उनकी याद में गुरुद्वारे में लंगर लगाया गया। इस दौरान बलविंदर सिंह, अमर सिंह, शुभम सिंह, जगजीत सिंह, गुरुप्रीतम, कुलदीप सिंह व अरविंदर सिंह उपस्थित रहे।

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उन्नाव। पांचवें सिख गुरु अर्जनदेव जी महाराज के शहीदी दिवस पर शहर के गुरुद्वारे में सुबह शबद-कीर्तन के बाद लंगर और प्रसाद वितरण हुआ। लोगों ने गुरु ग्रंथ साहिब के समक्ष माथा ठेका।

गुरु सिंह सभा के अध्यक्ष अरविंद सिंह ने बताया कि अर्जन देव सिखों के पांचवें गुरु थे। गुरु परंपरा का पालन करते हुए वह कभी भी गलत चीजों के आगे नहीं झुके। उन्होंने शरणागत की रक्षा के लिए स्वयं को बलिदान कर देना स्वीकार किया। मुगल शासक जहांगीर के आगे झुुके नहीं। वह हमेशा मानव सेवा के पक्षधर रहे। सिख धर्म में वह सच्चे बलिदानी थे। उनसे ही सिख धर्म में बलिदान की परंपरा की शुरुआत हुई। गुरु अर्जन देव का जन्म 15 अप्रैल 1563 में हुआ था। इनके पिता रामदास भी सिखों के चौथे गुरु थे।

अर्जन देव ने ही 1581 में अमृतसर स्थित हरमंदिर साहिब गुरुद्वारे की नींव रखी थी, जिसे स्वर्ण मंदिर के नाम से जाना जाता है। मुगल बादशाह अकबर की मृत्यु के बाद साल 1605 में जहांगीर मुगल साम्राज्य का बादशाह बना। उसने अर्जन देव पर बगावत का आरोप लगा बंदी बना लिया। 30 मई 1606 को उन्हें तवे पर बैठाकर उनके शरीर पर गर्म तेल डाला गया। गुरु के मुर्छित होने पर उन्हें रावी नदी की धारा में बहाया गया। उसी नदी पर गुरुद्वारा डेरा साहिब का निर्माण कराया गया है। उनकी याद में गुरुद्वारे में लंगर लगाया गया। इस दौरान बलविंदर सिंह, अमर सिंह, शुभम सिंह, जगजीत सिंह, गुरुप्रीतम, कुलदीप सिंह व अरविंदर सिंह उपस्थित रहे।

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